हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हज़रत मासूमा (स.ल.) के हरम के खातीब हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मांदगारी ने कहा, अल्लाह तआला ने पैगंबर-ए-इस्लाम (स.ल.) से फरमाया कि मोमिनीन से कह दो कि वो अपनी निगाहों को हराम से बचाएं क्योंकि नापाक निगाह दिल को बीमार कर देती है।
उन्होंने आगे कहा,जैसा कि कुरआन करीम में इरशाद हुआ है कि «الذین ان مکناهم فی الارض اقاموا الصلاة» "अगर हम उन लोगों को ज़मीन में पहुंच दे दें तो वो नमाज़ क़ायम करते हैं। इसलिए नमाज़ इस्लामी व्यवस्था का सबसे बड़ा लक्ष्य और दीन का स्तंभ है।
हुज्जतुल इस्लाम मानदगारी ने कहा, उचित है कि अहले बैत (स.ल.) के हरम में ही हर साल नमाज़ का विशेष समारोह आयोजित किया जाए ताकि अल्लाह के फर्ज पर ज़्यादा ध्यान दिया जाए जो सामाजिक तरक्की और सुधार का भी ज़रिया है।
हज़रत मासूमा (स.ल.) के हरम के वक्ता ने अमीरुल मोमिनीन इमाम अली (अ.ल.) के रिवायत अपनी ज़िंदगी को नमाज़ में बदल दो की ओर इशारा करते हुए कहा,नमाज़ सिर्फ एक इबादत नहीं बल्कि इंसानी तरबियत की एक बेहतरीन और व्यापक पाठशाला है। अगर हम नमाज़ को सही तरह से समझ लें तो हमारा सारा दीन, दुनिया और आखिरत ठीक हो जाएगा।
उन्होंने सूरए नूर की कुछ आयतों की ओर इशारा करते हुए आगे कहा, अल्लाह ने पैगंबर (स.ल.)से फरमाया कि "मोमिनीन से कह दो कि वो अपनी निगाहों को हराम से बचाएं क्योंकि नापाक निगाह दिल को बीमार कर देती है। जैसे नापाक खाने का शारीरिक असर होता है, वैसे ही हराम देखने या सुनने का रूहानी असर होता है और कभी-कभी ऐसा अमल इंसान को अल्लाह की बंदगी से सालों दूर कर देता है।
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